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ढैय्या का विचार
जब शनिदेव चंद्र कुंडली अर्थात जन्म राशि के अनुसार चतुर्थ
व अष्टम से गोचर करते हैं तो जातक को ढैय्या देते हैं। ढैय्या का मतलब होता है ढाई
वर्ष। वैसे तो शनिदेव प्रत्येक राशि में ही ढाई वर्ष रहता हैं। परन्तु ढैय्या का
विचार और कहीं से नहीं होता है। फिर चतुर्थ और अष्टम से ही क्याें? क्योंकि शनिदेव प्रत्येक भाव में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अनुसार फल देते हैं। चतुर्थ और अष्टम भाव मोक्ष के
भाव हैं। आज दुनिया में ज्यादातर व्यक्ति धर्म की तरफ कम और भौतिक सुखों की तरफ
ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। परन्तु ज्योतिष का नियम है कि शनिदेव जिस भाव से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए गोचर करे, उसी के अनुरूप व्यक्ति को कार्य करना चाहिए। जो व्यक्ति ढैय्या में तीर्थ
यात्रा,
समुद्र स्नान और धर्म के कार्य दान-पुण्य इत्यादि करते हैं, उन्हें ढैय्या में भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। लेकिन जो उस अवधि में इन
कामों से दूर रहते हैं,
उन्हें अपने ही पूर्वकृत अशुभ कर्मों के फलस्वरूप शारीरिक-मानसिक परेशानी और कारोबार में हानि होती है।
nice
ReplyDeleteThank You Sir
DeleteVERY NICE
ReplyDeleteThank You Sir
Deletevery informative article
ReplyDeleteThank You Shaantam
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